Prabha - प्रभा:
(A Multilingual Journal of Humanities & Social Science)

‘‘प्रभा ’’ की अवधारणा
सृष्टि के आरम्भ से ही जीवमात्र का स्वाभाविक धर्म है सुखानुभूति, जिसे प्राप्त करने के लिए वह निरंतर अपनी तार्किक क्षमताओं, बौद्धिक प्रतिभाओं तथा शारीरिक श्रम के आधार पर प्रयत्नशील रहता है । शोध अथवा अनुसंधान का भी प्रादुर्भाव नवीन सिद्धांतों का अन्वेषण और उससे होने वाले लाभ को दृष्टिगत करके ही हुआ है ! वस्तुतःशोध भी मानवमात्र का स्वाभाविक धर्म ही है क्योंकि प्रत्येक मनुष्य अपने दैनंदिन क्रियाकलापों का प्रयोग तथा उसके लाभ-हानि का मूल्यांकन करके उसे ग्राह्य अथवा निषिद्ध के रूप में परिभाषित करता है । शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक के सर्वांगीण विकास के द्वारा स्वस्थ,समृद्ध,एवं संपन्न समाज का निर्माण करना है। शैक्षणिक संस्थान इसके आधार होते हैं इन संस्थानों का उत्तरदायित्व है कि वो अध्येताओं में शोध प्रवृत्ति की वृद्धि करते हुए नवीन अनुसंधान हेतु मार्गदर्शन करें । डी.ए.वी.पी.जी.कॉलेज के द्वारा अपने शोध अध्येताओं,आचार्यों तथा अन्य शैक्षणिक संस्थानों के द्वारा किये जा रहे शोध को समाज में प्रसारित करने तथा आगामी पीढी के मन में अनुसंधान के प्रति रुचि उत्पादन के उद्देश्य से प्रभा नामक शोध पत्रिका का प्रकाशन किया जाता है यह शोध पत्रिका बहुविषयक तथा बहुभाषायी समीक्षित एवं मूल्यांकित है जिसके समीक्षक मंडल,मार्गदर्शक समिति में राष्ट्र के श्रेष्ठ वरेण्य विद्वान् विद्यमान हैं जिनका ज्ञान-प्रवाह हमें निरंतर अभिषिंचित कर रहा है। हमें विश्वास है कि प्रभा अपने उद्देश्यों की पूर्ति करते हुए शोध के क्षेत्र में अपनी संज्ञा ‘प्रभा’ को सार्थक करेगी।

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